तुम सुख की तलाश में हो। लेकिन क्या कभी रुक कर सोचा है कि जिस सुख के पीछे तुम भाग रहे हो, वो सच में सुख है या सिर्फ एक पल का नशा?
हस्तमैथुन उसी नशे की तरह है—शुरू में मीठा लगता है, लेकिन अंत में भीतर एक अजीब सा खालीपन छोड़ जाता है। जब तुम इसे करते हो तो कुछ पल के लिए बेचैनी खत्म हो जाती है, मन हल्का लगता है, लेकिन थोड़ी देर बाद शरीर ढीला पड़ जाता है, आँखों की चमक खो जाती है और मन में अपराध-बोध का बोझ बैठ जाता है।
असल में ये आदत धीरे-धीरे तुम्हारी ही ऊर्जा का सौदा है। तुम सोचते हो कि ये तुम्हारा निजी मामला है, लेकिन ये तुम्हारे आत्मविश्वास, तुम्हारे व्यवहार और यहां तक कि तुम्हारी उपस्थिति में भी झलकने लगता है।
यह एक चक्र है—उत्तेजना, सुख, थकान और फिर वही लालसा। शुरुआत में लगता है तुम इसे नियंत्रित कर रहे हो, लेकिन धीरे-धीरे ये आदत तुम्हें नियंत्रित करने लगती है। तस्वीरें, वीडियो या कल्पनाएँ तुम्हारे मन पर हावी हो जाती हैं। तुम्हारा दिमाग सीख चुका होता है कि तनाव और अकेलेपन से भागने का सबसे आसान तरीका यही है। लेकिन ये असली आज़ादी नहीं, बल्कि मानसिक गुलामी है।
सच्चाई यह है कि सुख की यह आदत तुम्हें भीतर से और ज़्यादा खाली करती है। यह ऊर्जा वही है जिससे तुम सोचते हो, सपने देखते हो, प्यार करते हो, रचते हो। हस्तमैथुन उस ऊर्जा का सबसे तेज़ रिसाव है—वो बीज, जो जीवन पैदा कर सकता है, क्षणिक आनंद में व्यर्थ हो जाता है।
जब यह ऊर्जा भीतर रहती है तो तुम्हें चुंबकीय बनाती है—आवाज़ में गहराई, आँखों में चमक, चेहरे पर आत्मविश्वास और शरीर में ताक़त आ जाती है। लेकिन जब यह नष्ट होती है, तो सब फीका पड़ जाता है।
समस्या यह है कि लोग इसे पाप या गलती मानकर दबाने लगते हैं। दबाने से यह और गहराई में बैठ जाती है। जितना रोकने की कोशिश करते हो, उतनी ही चाहत बढ़ती है। असली रास्ता रोकने में नहीं, समझने में है। जब तुम जागरूक हो जाते हो, तो यह आदत अपने आप ढीली पड़ने लगती है।
हस्तमैथुन की सबसे खतरनाक बात यह है कि यह धीरे-धीरे आत्मविश्वास को खा जाता है। तुम्हारी चाल, तुम्हारी नज़र, तुम्हारी आवाज़—सब थकी-थकी लगने लगती है। तुम खुद से नाराज़ रहने लगते हो और यह नाराज़गी तुम्हारे रिश्तों और फैसलों पर असर डालती है।
याद रखो—यह वही ऊर्जा है जो तुम्हें असली आत्मविश्वास देती है। जब तुम इसे संभालते हो, तो यह तुम्हारी सोच को तेज करती है, तुम्हारे शब्दों में असर लाती है और तुम्हें चुनौतियों का सामना करने की ताक़त देती है। सोचो—क्या कोई व्यक्ति, जो बार-बार अपनी ऊर्जा खोता है, सच में जीवन के बड़े लक्ष्य हासिल कर सकता है?
हस्तमैथुन तुम्हें तात्कालिक सुख तो देता है, लेकिन लंबे लक्ष्यों से दूर कर देता है। यह तुम्हें सुस्त, टालमटोल करने वाला और भीतर से खाली बना देता है। इसलिए अगली बार जब यह इच्छा आए, तो देखो उसके पीछे कौन-सा खालीपन है, कौन-सी बेचैनी है। उस खालीपन को भरने के और तरीके खोजो—व्यायाम, ध्यान, रचनात्मक काम, नए कौशल सीखना। जब तुम अपनी ऊर्जा को सृजन में लगाते हो, तो वही ऊर्जा दस गुना ताक़त बनकर लौटती है।
सच्चा सुख वही है जो तुम्हें भीतर से शक्तिशाली बनाए, स्वतंत्र करे। हस्तमैथुन का सुख केवल भ्रम है—गुलामी का जाल है। अगर तुम इस भ्रम को पहचान लोगे, तो मन खुद ही इससे दूर हो जाएगा।
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