एक बार एक छोटे से गाँव में आदित्य नाम का युवक रहता था।
आदित्य पढ़ाई-लिखाई में अच्छा था, लेकिन उसका मन हमेशा बेचैन रहता।
वह हर समय सोचता रहता—
“कल क्या होगा? अगर परीक्षा खराब हो गई तो? नौकरी नहीं मिली तो? शादी ठीक न हुई तो? बीमारी आ गई तो?”
उसके दिमाग में हजारों चिंताएँ घूमती रहतीं।
वह रात-रात भर सो नहीं पाता था।
कभी भविष्य की चिंता, कभी अतीत की गलती—बस इन्हीं में उसका जीवन उलझा हुआ था।
एक दिन उसकी यह बेचैनी देखकर गाँव के एक बुज़ुर्ग साधु ने उसे बुलाया।
साधु ने पूछा,
“बेटा, तेरी आँखों में इतनी थकान क्यों है?”
आदित्य ने कहा,
“बाबा, मुझे हर समय भविष्य की चिंता सताती है। मैं सोचता हूँ कि कल क्या होगा। अगर सब बिगड़ गया तो?”
साधु मुस्कुराए और बोले,
“तू मुझे एक बात बता—जब तू खेत में बीज बोता है, क्या तू उसी दिन फल खा लेता है?”
आदित्य ने कहा,
“नहीं बाबा, फल तो अपने समय पर आता है।”
साधु ने फिर पूछा,
“तो फिर तू क्यों चाहता है कि जीवन का हर फल पहले से ही तुझे पता चल जाए?
भविष्य बीज की तरह है—आज बो, समय आने पर फल अपने आप मिलेगा। लेकिन अगर तू अभी चिंता में बीज को उखाड़ देगा, तो फल कभी नहीं आएगा।”
ये सुनकर आदित्य चुप हो गया।
साधु ने आगे कहा,
“मनुष्य का सबसे बड़ा भ्रम यही है कि वह भविष्य को पकड़ना चाहता है।
वह हर दिन यह सोचता है—कल कैसा होगा, कौन साथ रहेगा, क्या मिलेगा।
लेकिन सोचते-सोचते वह अपना आज लाखो देता है।
याद रख—भविष्य हमारे हाथ में नहीं है, वह जब आएगा, तब ही दिखेगा।”
उन्होंने पास रखे एक पत्थर को उठाकर पानी में फेंका और बोले—
“देख! पानी में लहरें उठीं, फिर शांत हो गईं।
यही जीवन है—क्षणिक हलचल, फिर स्थिरता।
लेकिन तू इन लहरों से डरकर जीना ही छोड़ देता है।”
आदित्य ने घबराकर कहा,
“लेकिन बाबा, अगर भविष्य में कुछ बुरा हुआ तो?”
साधु ने मुस्कुराते हुए कहा,
“बेटा, बुरा तो वही होता है जिसका तू अभी से डरने लगता है।
याद रख—चिंता और जिम्मेदारी अलग हैं।
जिम्मेदारी का अर्थ है कि तू आज का कार्य पूरी सजगता से कर।
चिंता का अर्थ है कि तू भविष्य की कल्पनाओं में उलझा रहे।
चिंता कभी समस्या हल नहीं करती, वह केवल आज का सुख छीन लेती है।”
बातों-बातों में शाम हो गई।
साधु ने आसमान की ओर इशारा किया,
“देख, सूरज ढल गया।
क्या तू कल का सूरज खींचकर अभी ला सकता है?”
आदित्य ने सिर झुका लिया।
साधु ने कहा,
“तो फिर कल की चिंता क्यों?
जैसे सूरज अपने समय पर उगता और ढलता है, वैसे ही जीवन की घटनाएँ भी अपने समय पर घटती हैं।
कल क्या होगा, वो कल देखेंगे।
उस रात आदित्य पहली बार चैन से सोया।
उसने महसूस किया कि जब उसने कल की चिंता छोड़ दी, तो उसके दिल से एक बड़ा बोझ उतर गया।
अगले दिन उसने अपनी पढ़ाई पर ध्यान दिया, खेत में काम किया, दोस्तों के साथ हंसा—और पहली बार जीवन को आज में जीया।
धीरे-धीरे उसकी आदत बदल गई।
वह भविष्य से भागा नहीं, बल्कि उसे आने पर स्वीकार करना सीख गया।
उसने पाया कि जब आज सही जीया जाता है, तो कल अपने आप सही हो जाता है।
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